नीतीश कुमार की क्लीन इमेज क्यों बनी ‘बिहार विजय सूत्र’?

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

बिहार चुनाव 2025 ने एक बार फिर भारतीय राजनीति का सबसे पुराना फॉर्मूला ताजा कर दिया—साफ छवि = साफ जीत। नीतीश कुमार की वापसी कोई रातोंरात नहीं हुई। यह क्लीन ब्रांड, भरोसे वाला चेहरा और स्थिर राजनीति का पैकेज है, जो बिहार के मतदाताओं के दिल में आज भी वैल्यू रखता है।

नीतीश–मोदी की जोड़ी: एक भरोसेमंद ‘स्टेबल पैकेज’

बिहार ने इस बार जिस बात पर सबसे ज्यादा भरोसा किया, वह था— अनिश्चितता से दूर रहना। मोदी का नेशनल ब्रांड + नीतीश की स्टेबल गवर्नेंस = मतदाताओं की पसंदीदा कॉम्बो-डील। महागठबंधन के शोर, पोस्टर, और वादों के बीच मतदाता वहीं पहुंचा जहाँ उसे भरोसा मिला।

क्लीन इमेज—आज की राजनीति में ‘रेयर आइटम’

राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का सीजन कभी खत्म नहीं होता, लेकिन नीतीश की खासियत यह रही कि— उन्होंने अपने ऊपर व्यक्तिगत भरोसे को कभी टूटने नहीं दिया। आज जब राजनीति में “इमेज मेन्टेनन्स” कठिन है, नीतीश की छवि वोटरों को बेहद ‘सही’ लगी।

विकास, सादगी और शांति—बिहार मॉडल की तिहरी डोज

नीतीश को लेकर यह मान्यता पक्की है कि वे फालतू विवाद नहीं करते। भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देते और कामों में स्थिरता रखते हैं। मतदाताओं ने यही सोचकर वोट दिया कि— “कम बोले, पर काम करे… तो ठीक है!”

क्लीन इमेज के सामने बाकियों का मेकअप उतर गया!

जब बाकी पार्टियां “चुनाव से 15 दिन पहले” अपनी छवि पर मेकअप करती रहीं, नीतीश ने पिछले 20 साल की क्लीन-पॉलिटिक्स से अपना ब्रांड खड़ा रखा।

चुनाव ने फिर साबित किया— पॉलिटिक्स में नैरेटिव नहीं, नेचर चलता है। और नीतीश का नेचर हमेशा ‘नीट-एंड-क्लीन’ रहा।

बिहार ने बता दिया— इमेज चमकीली नहीं, भरोसेमंद होनी चाहिए 2025 के जनादेश में संदेश साफ है— नेता वही जीतेगा जिसकी छवि जनता को भरोसा दिलाती है। बिहार के वोटरों ने एक बार फिर साबित किया कि राजनीति का असली हथियार किसी IT सेल का शोर नहीं, बल्कि ईमानदार छवि होती है।

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